जहाँ अन्य समस्त प्राणियों के लिए आग भय की वस्तु है वहीं मनुष्य ने आग को भी खेल-तमाशे की वस्तु बना लिया;
3.
क्या तुम्हारे पुत्रों ने तुम्हें मजबूर कर दिया है कि तुम लोगों के बीच बैठो तिरस्कार और भय की वस्तु बन कर!
4.
जहाँ अन्य समस्त प्राणियों के लिए आग भय की वस्तु है वहीं मनुष्य ने आग को भी खेल-तमाशे की वस्तु बना लिया ; यह केवल मनुष्य के विलक्षण मस्तिष्क का ही कमाल है।
5.
जेल और फॉँसी उसके लिए आज भय की वस्तु नहीं, गौरव की वस्तु हो गयी थी! सत्य का प्रत्यक्ष रुप आज उसने पहली बार देखा मानों वह कवच की भॉँति उसकी रक्षा कर रहा हो।